कविता

ऊँचाई

ऊँचे पहाड़ पर,पेड़ नहीं लगते,पौधे नहीं उगते,न घास ही जमती है। जमती है सिर्फ़ बर्फ़,जो कफ़न की तरह सफ़ेदऔर मौत की तरह ठंडी होती हैखेलती,...

चाँद की आदतें

चाँद की कुछ आदतें हैं।एक तो वह पूर्णिमा के दिन बड़ा-सा निकल आता हैबड़ा नक़ली (असल शायद वही हो)।दूसरी यह, नीम की सूखी टहनियों...

प्रेम

उमंगों भरा दिल किसी का न टूटे।पलट जायँ पासे मगर जुग न फूटे।कभी संग निज संगियों का न छूटे।हमारा चलन घर हमारा न लूटे।सगों...

जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे

जो मेरे घर कभी नहीं आएँगेमैं उनसे मिलनेउनके पास चला जाऊँगा।एक उफनती नदी कभी नहीं आएगी मेरे घरनदी जैसे लोगों से मिलनेनदी किनारे जाऊँगाकुछ...

उदय प्रकाश की कविताएँ

डाकिया डाकियाहांफता हैधूल झाड़ता हैचाय के लिए मना करता है डाकियाअपनी चप्पलफिर अंगूठे में संभालकरफँसाता है और, मनीआर्डर के रुपयेगिनता है। वसंत रेल गाड़ी आती हैऔर बिना रुकेचली जाती...

रिक्शेवाला

आवाज़ देकररिक्शेवाले को बुलायावो कुछलंगड़ाता‌ हुआ आया। मैंने पूछा‌-यार, पहले ये बताओगेपैर में चोट‌ ‌है कैसे चलाओगे? रिक्शेवाला कहता है-बाबू जीरिक्शा पैर से नहींपेट से चलता...

प्रचलित