जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे

जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे
मैं उनसे मिलने
उनके पास चला जाऊँगा।
एक उफनती नदी कभी नहीं आएगी मेरे घर
नदी जैसे लोगों से मिलने
नदी किनारे जाऊँगा
कुछ तैरूँगा और डूब जाऊँगा।

पहाड़, टीले, चट्टानें, तालाब
असंख्य पेड़ खेत
कभी नहीं आयेंगे मेरे घर
खेत खलिहानों जैसे लोगों से मिलने
गाँव-गाँव, जंगल-गलियाँ जाऊँगा।
जो लगातार काम से लगे हैं
मैं फुरसत से नहीं
उनसे एक ज़रूरी काम की तरह
मिलता रहूँगा।
इसे मैं अकेली आख़िरी इच्छा की तरह
सबसे पहली इच्छा रखना चाहूँगा।

कवि ने कहा शृंखला से – ( विनोद कुमार शुक्ल )

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विनोद कुमार शुक्ल
विनोद कुमार शुक्ल
कवि और उपन्यासकार के रूप में प्रसिद्ध विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ में हुआ। कविता और उपन्यास में उनकी भिन्न साहित्यिक शैली पाठकों को बहुत प्रभावित करती है। उनका पहला कविता संग्रह 1971 में 'लगभग जय हिन्द' नाम से प्रकाशित हुआ। विनोद कुमार शुक्ल हिंदी कविता के वृहत्तर परिदृश्य में अपनी विशिष्ट भाषिक बनावट और संवेदनात्मक गहराई के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने समकालीन हिंदी कविता को अपने मौलिक कृतित्व से सम्पन्नतर बनाया है और इसके लिए वे पूरे भारतीय काव्य परिदृश्य में अलग से पहचाने जाते हैं। उनकी प्रमुख रचनाएं हैं: कविता संग्रह- 'लगभग जयहिंद ' वर्ष 1971, ' वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह' वर्ष 1981, ' सब कुछ होना बचा रहेगा ' वर्ष 1992, ' अतिरिक्त नहीं ' वर्ष 2000, ' कविता से लंबी कविता ' वर्ष 2001, ' आकाश धरती को खटखटाता है ' वर्ष 2006,' पचास कविताएँ' वर्ष 2011,' कभी के बाद अभी ' वर्ष 2012,' कवि ने कहा ' -चुनी हुई कविताएँ वर्ष 2012, ' प्रतिनिधि कविताएँ ' वर्ष 2013. उपन्यास-'नौकर की कमीज़' वर्ष 1979,'खिलेगा तो देखेंगे ' वर्ष 1996,' दीवार में एक खिड़की रहती थी ' वर्ष 1997,' हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़ ' वर्ष 2011,' यासि रासा त ' वर्ष 2017, 'एक चुप्पी जगह' वर्ष 2018. कहानी संग्रह- ' पेड़ पर कमरा ' वर्ष 1988,' महाविद्यालय ' वर्ष 1996. आदि। विनोद कुमार शुक्ल को उपन्यास 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' के लिए वर्ष 1999 का 'साहित्य अकादमी' पुरस्कार से सम्मानित किया गया।