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व्यंग्य
दोस्ती निभा पाना बेहद कठिन कार्य है
एकलव्य राय
गाइज़ एक बहुत पुरानी बात बता रहा हूँ.. यूँ समझिए कि जब धरती पर जीवन पनप रहा था उससे साल दो साल बाद की...
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व्यंग्य
तीसरे दर्जे के श्रद्धेय
हरिशंकर परसाई
बुद्धिजीवी बहुत थोड़े में संतुष्ट हो जाता है। उसे पहले दर्जे का किराया दे दो ताकि वह तीसरे में सफर करके पैसा बचा ले।...
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व्यंग्य
पिटने-पिटने में फ़र्क़
हरिशंकर परसाई
(यह आत्म प्रचार नहीं है। प्रचार का भार मेरे विरोधियों ने ले लिया है। मैं बरी हो गया। यह ललित निबंध है।) बहुत लोग कहते...
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