चन्द्रधर शर्मा गुलेरी

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चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' हिन्दी के कथाकार, व्यंगकार तथा निबन्धकार थे। उनका जन्म 7 जुलाई 1883 को हुआ था। अपने 39 वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में गुलेरी जी ने किसी स्वतन्त्र ग्रन्थ की रचना तो नहीं कि किन्तु फुटकर रूप में बहुत लिखा, अनगिनत विषयों पर लिखा और अनेक विधाओं की विशेषताओं और रूपों को समेटते-समंजित करते हुए लिखा। उनके लेखन का एक बड़ा हिस्सा जहाँ विशुद्ध अकादमिक अथवा शोधपरक है, उनकी शास्त्रज्ञता तथा पाण्डित्य का परिचायक है; वहीं, उससे भी बड़ा हिस्सा उनके खुले दिमाग, मानवतावादी दृष्टि और समकालीन समाज, धर्म राजनीति आदि से गहन सरोकार का परिचय देता है। लोक से यह सरोकार उनकी ‘पुरानी हिन्दी’ जैसी अकादमिक और ‘महर्षि च्यवन का रामायण’ जैसी शोधपरक रचनाओं तक में दिखाई देता है। इन बातों के अतिरिक्त गुलेरी जी के विचारों की आधुनिकता भी हमसे आज उनके पुराविष्कार की माँग करती है। उनकी प्रमुख रचनाएं हैं- निबंध- शैशुनाक की मूर्तियाँ, देवकुल, पुरानी हिन्दी, संगीत, कच्छुआ धर्म, आँख, मोरेसि मोहिं कुठा। कविताएँ- एशिया की विजय दशमी, भारत की जय, वेनॉक बर्न, आहिताग्नि, झुकी कमान, स्वागत, ईश्वर से प्रार्थना। कहानी संग्रह- उसने कहा था, सुखमय जीवन, बुद्धु का काँटा। चन्द्रधर शर्मा गुलेरी को हिन्दी साहित्य में सबसे अधिक प्र्सिद्धि 1915 में ‘सरस्वती’ मासिक में प्रकाशित कहानी ‘उसने कहा था’ के कारण मिली। यह कहानी शिल्प एवं विषय-वस्तु की दृष्टि से आज भी ‘मील का पत्थर’ मानी जाती है।

रचनाएँ

उसने कहा था

बड़े-बड़े शहरों के इक्के-गाड़ीवालों की ज़बान के कोड़ों से जिनकी पीठ छिल गई है, और कान पक गए हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि...

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