जयशंकर प्रसाद

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छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1890 काशी के गोवर्धनसराय में हुआ। वह हिन्दी के प्रसिद्ध कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्ध-लेखक थे। वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिन्दी को गौरवान्वित होने योग्य कृतियाँ दीं। कवि के रूप में वे निराला, पन्त, महादेवी के साथ छायावाद के प्रमुख स्तम्भ के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं; नाटक लेखन में भारतेन्दु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे जिनके नाटक आज भी पाठक न केवल चाव से पढ़ते हैं, बल्कि उनकी अर्थगर्भिता तथा रंगमंचीय प्रासंगिकता भी दिनानुदिन बढ़ती ही गयी है। भारतीय दृष्टि तथा हिन्दी के विन्यास के अनुरूप गम्भीर निबन्ध-लेखक के रूप में वे प्रसिद्ध रहे हैं। उन्होंने अपनी विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करुणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन कलात्मक रूप में किया है। उनकी प्रमुख रचनाएं हैं- काव्य- प्रेम-पथिक, करुणालय , महाराणा का महत्त्व, चित्राधार, कानन कुसुम, झरना, आँसू, लहर, कामायनी । कहानी-संग्रह एवं उपन्यास छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आँधी, इन्द्रजाल। उपन्यास- कंकाल, तितली , इरावती। नाटक-एकांकी एवं निबन्ध- उर्वशी (चम्पू), सज्जन, प्रायश्चित्त, कल्याणी परिणय, राज्यश्री , विशाख, अजातशत्रु, जनमेजय का नागयज्ञ, कामना, स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य, एक घूँट, चन्द्रगुप्त , ध्रुवस्वामिनी , अग्निमित्र (अपूर्ण) निबन्ध- काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध

रचनाएँ

आकाशदीप

(एक) बंदी! क्या है? सोने दो। मुक्त होना चाहते हो? अभी नहीं, निद्रा खुलने पर, चुप रहो। फिर अवसर न मिलेगा। बड़ा शीत है, कहीं से एक कंबल डालकर कोई...

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