कृष्णा सोबती

2 लेख
कृष्णा सोबती जी का जन्म 18 फरवरी 1925 को गुजरात (पाकिस्तान) में हुआ था। उन्होंने अपनी रचनाओं में महिला सशक्तिकरण और स्त्री जीवन की जटिलताओं का जिक्र किया था। सोबती को राजनीति-सामाजिक मुद्दों पर अपनी मुखर राय के लिए भी जाना जाता है। वह अपनी बेलाग कथात्मक अभिव्यक्ति और सौष्ठवपूर्ण रचनात्मकता के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने हिंदी की कथा भाषा को विलक्षण ताज़गी़ दी है। उनके भाषा संस्कार के घनत्व, जीवन्त प्रांजलता और संप्रेषण ने हमारे समय के कई पेचीदा सत्य उजागर किये हैं। इनकी प्रमुख रचनाएं हैं- कहानी संग्रह- बादलों के घेरे - 1980, लम्बी कहानी (आख्यायिका/उपन्यासिका)-, डार से बिछुड़ी -1958, मित्रो मरजानी -1967, यारों के यार -1968, तिन पहाड़ -1968, ऐ लड़की -1991, जैनी मेहरबान सिंह -2007 (चल-चित्रीय पटकथा; 'मित्रो मरजानी' की रचना के बाद ही रचित, परन्तु चार दशक बाद 2007 में प्रकाशित) उपन्यास- सूरजमुखी अँधेरे के -1972, ज़िन्दगी़नामा -1979, दिलोदानिश -1993, समय सरगम -2000, गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान -2017 (निजी जीवन को स्पर्श करती औपन्यासिक रचना), विचार-संवाद-संस्मरण-, हम हशमत (तीन भागों में), सोबती एक सोहबत, शब्दों के आलोक में, सोबती वैद संवाद, मुक्तिबोध : एक व्यक्तित्व सही की तलाश में -2017, लेखक का जनतंत्र -2018, मार्फ़त दिल्ली -2018 यात्रा-आख्यान- बुद्ध का कमण्डल : लद्दाख़ कृष्णा सोबती जी को उनके उपन्यास ‘ज़िंदगीनामा’ के लिए वर्ष 1980 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से तथा साल 2017 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

रचनाएँ

सिक्का बदल गया- कृष्णा सोबती

खद्दर की चादर ओढ़े, हाथ में माला लिए शाहनी जब दरिया के किनारे पहुँची तो पौ फट रही थी। दूर-दूर आसमान के पर्दे पर...

बादलों के घेरे

भुवाली की एक छोटी सी कॉटेज में लेटा-लेटा मैं सामने के पहाड़ देखता हूँ। पानी भरे, सूखे-सूखे बादलों के घेरे देखता हूँ। बिना आँखों...

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